शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

!! मुझे कहीं गर जाना होता !!

लेके लाठी नंगे पाँव बस,
गठरी बांध रवाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

आशाओं और उम्मीदों के,
पंख पखार सायना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

तितलिओ सा उडाता मैं और,
बादलों में छिप जाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

झर झर बहते झरनो को भी,
मोड़ उस पार ले जाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

उड़ पंछियों सा मैं भी एक दिन,
चहक कर धुन बजाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

खूबसूरती से पंख फैलाये,
निस्चल निसदिन आना होता, 
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

  
       अमोद ओझा (रागी)

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