शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

!! समय के इतिहास को देखो.!!

देखो ! निस दिन लगे नए प्यास को देखो,
बदलते, समय के इतिहास को देखो. !!

था कभी, सतयुग धरती पर, आज कलयुग भी बिता जा रहा है,
हुआ था “महाभारत” यहाँ, आज महा भारत हुआ जा रहा है,
थे कभी “कृष्ण” और “राम” यहाँ पर, आज बस कोहराम है,
था, कभी उपवन धरती पर, आज बंजर खेत खलिहान है,
कैसे बदली समय की रेखा, और बदलते ऋतूमास तो देखो,
क्या और भी कुछ यहाँ बदल पायेगा ?
देखो ! बदलते, समय के इतिहास को देखो, !!

था पुरुसोत्तम राज्य जहां, वहां आज पुरुस ही उत्तम है,
थीं आई सीता भी जहां, वहां औरतों का जीवन छति तम है,
थे ऋषि और महर्षि जहां, वहां अब ढोंगीओ का ही दमखम है
अलख निरंजन का राग नहीं अब, धर्मराग का परचम है
कहीं पिता के बातों को मान, जाते हुए वनवास तो देखो,
भाई और भाई के बीच, प्यार का वो त्यागवास तो देखो,
क्या हम भी ऐसा कर पाएंगे ?
देखो ! बदलते, समय के इतिहास को देखो !!

देखो ! समय बदल रहा है, कपटी सा मन मचल रहा है
तुम्हरी देख सुखमय की लाली, सुई सा तन जल रहा है,
उठ रहा मन में विरोधी, ज्वालाओं का ऐसा गोला,
सिर्फ दिखाने हेतु पहना है, सब ने ईमानदारी का चोला,
अधिकारों के लिए अपनों से, बढ़ते उस कलह व्यास को देखो,
दिल में है उठने वाली, गन्दी घृडा प्यास को देखो,
क्या आगे भी ऐसा ही होगा ?
आगे मुझको पता नहीं बस, देखो अपने आस- पास ही देखो,
देखो ! बदलते, समय के इतिहास को देखो, !!

अमोद ओझा (रागी)

!! प्रियवर मुझे घर जाने दो !!

प्रियवर मुझे घर जाने दो,
कल, यही फिर आने को.

गदबेरा की बेला है आई,
सुनो! इसी में है चतुराई,
संध्या ने भी ली अंगड़ाई,
रोशनी भी है कुम्हलाई,
सूरज आया है डूब जाने को,
प्रियवर मुझे घर जाने दो. !! 1!!

जो देर हुई मुझसे हरजाई,
मेरी तो है शामत आई,
अम्मा ने आवाज चढ़ाई,
बहनो ने भी आँख दिखाई,
जो पापा ने हुंकार लगाई,
कल न मिलेगा फिर आने को,
प्रियवर मुझे घर जाने दो, !! 2!!

है प्रियवर जब से प्रीत लगाई,
रहती हु मैं थोड़ी घबराई,
हो न कही अपनी रुसवाई,
है तुमने मेरी आस बढ़ाई,
तो कल यही फिर आने दो,
प्रियवर मुझे घर जाने दो, !! 3!!

क्या कहु, 
इस रात ने जो की बेवफाई
मुझको तुमसे दूर ले आई,
इसको प्रीत समझ न आई,
बस रात युही ढल जाने दो,
प्रियवर मुझे घर जाने दो. !! 4!!

जब चाँद छितिज पर आएगा,
तारों के दीप जलाएगा,
आएगा सो जायेगा,
कल सुबह सूरज की किरणों को
एक पंचम राग सुनाने दो,
प्रियवर मुझे घर जाने दो.!! 5!!

अमोद ओझा (रागी)

!! मेहंदी लगे हाथ !!



वो मेहंदी लगे हाथ दिखाकर रोई,
मैं किसी और की हु, मुझे यह बात बता कर रोई,
मैं पूछा कौन है वो खुसनसीब बांदा,
वो मेहंदी से लिखा नाम दिखा कर रोई. !!

कही गम से फैट जाये जिगर मेरा,
वो हँसते हँसते मुझे भी हँसा कर रोई,
उसने जाना जब मेरे रोने का सबब,
अपने आंसू मेरी हथेली पर सजा कर रोई !!

दिल ने चाहा उसे जी भर के देख लूँ,
वो मेरी आँखो की प्यास बुझा कर रोई,
कभी कहती थी की मैं जी पाऊँगी तुम बिन,
आज वो फिर वही बात दोहरा कर रोई, !!


इतना  दर्द था मुझसे बिछड़ने का उसको,
अपनी बीती बातें बता बता कर रोई,
सोंचा भर लूँ आग़ोश में अपने उसको,
पर दिल मजबूर था यह जता कर रोई,


                           अमोद ओझा (रागी)

!! आतंक वाद !!

म्रित सय्या  पे  सोना  है, आतंक वाद गुल्फ़ामे हुस्न.
नाही इसके जात पात है, नाही है जनाने हुस्न.
बम बारूदों से पिघले है, मतवाले मस्ताने हुस्न.
नाही इनकी सीमा कोई, नाही अपने बेगाने हुस्न.
सर काटना मार देना, है इनके कारनामे हुस्न.


अपनों का ही गला घोटें, और बच्चो की किलकारियों को.
माताओ को विधवा कर दे, मार के अपने ही बापों को.
बहु बेटीओ के इज्जत से, खिलवाड़ करते इन सांपों को.
देश का विनाश करते, देख रहे है इन आतंक वादो को.
क्या हम में शक्ति नही जो,  इन दुस्टों का संघार करें.
रोक सके उन धर्मनिरपेछो को, जो आतंक वाद वयापार करें.

लम्बी छाती चौड़ा सीना, दीखते है बस छप्पन इंच.
अपने में ही करते रहते, आतंक विरोधी मंथन किंच.
बढ़ा लेते है आलिंगन बस, आतंक वाद मिटाने को.
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, भाईचारा लाने को.
आतंक वाद कोई जात नहीं है, भाईचारा सौगात नहीं है
मौका परास्त ये लोग है बस कुछ, और इनकी औकात नहीं हैं.

खाते हैं हम कसम हर कदम, बस आतंक वाद मिटानी हैं
लेकिन नहीं मिटेगी कभी ये,  हैवानो ने ठानी हैं
करना हैं जो आतंक वाद खत्म, आओ ये प्रण स्वीकार करो.
करते हैं जो व्यापार इसका, उन धर्मनिरपेछो का बहिस्कार करो.

        
                      आमोद ओझा (रागी)

!! जिंदगी की शाम हु मैं !!

जिंदगी की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,
रख लो होठों से लगाकर, कही छलकता जाम हु मैं.

मैं  अंगूरों की बानी हु, मदिरायलए पयासी हु मैं.
मेरे दास है पिने वाले, और उनकी दासी हु मैं.
रूह को सुकून देती, दर्द का पैगाम हु मैं,
रख लो होठों से लगाकर, कही छलकता जाम हु मैं.

जिंदगी की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,

मैं बड़ी पॉयरी बला हु, और मेरे रंग है गेहरें.
लाल पीले बोतलों से, लगती हु मैं और सुनहरे.
आते है हर लोग खिचे, ऐसी काया आम हु मैं.
जात पात को मैं न देखती, सब की छाया शाम हु मैं,
रख लो होठों से लगाकर, कही छलकता जाम हु मैं.

जिंदगी की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,

हु जहा मैं वह जगह भी, जलवा ऐ माशूक नहीं .
शौक ऐ दीदार अगर है, तो हर नज़र महबूब सही.
पार्टिओ में रओनको का,एकलौता इललजम हु मैं.
रख लो होठों से लगाकर, कही  छलकता जाम हु मैं.

जिंदगी  की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,


आमोद ओझा  (रागी)

!! मुझे कहीं गर जाना होता !!

लेके लाठी नंगे पाँव बस,
गठरी बांध रवाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

आशाओं और उम्मीदों के,
पंख पखार सायना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

तितलिओ सा उडाता मैं और,
बादलों में छिप जाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

झर झर बहते झरनो को भी,
मोड़ उस पार ले जाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

उड़ पंछियों सा मैं भी एक दिन,
चहक कर धुन बजाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

खूबसूरती से पंख फैलाये,
निस्चल निसदिन आना होता, 
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

  
       अमोद ओझा (रागी)