शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

!! आतंक वाद !!

म्रित सय्या  पे  सोना  है, आतंक वाद गुल्फ़ामे हुस्न.
नाही इसके जात पात है, नाही है जनाने हुस्न.
बम बारूदों से पिघले है, मतवाले मस्ताने हुस्न.
नाही इनकी सीमा कोई, नाही अपने बेगाने हुस्न.
सर काटना मार देना, है इनके कारनामे हुस्न.


अपनों का ही गला घोटें, और बच्चो की किलकारियों को.
माताओ को विधवा कर दे, मार के अपने ही बापों को.
बहु बेटीओ के इज्जत से, खिलवाड़ करते इन सांपों को.
देश का विनाश करते, देख रहे है इन आतंक वादो को.
क्या हम में शक्ति नही जो,  इन दुस्टों का संघार करें.
रोक सके उन धर्मनिरपेछो को, जो आतंक वाद वयापार करें.

लम्बी छाती चौड़ा सीना, दीखते है बस छप्पन इंच.
अपने में ही करते रहते, आतंक विरोधी मंथन किंच.
बढ़ा लेते है आलिंगन बस, आतंक वाद मिटाने को.
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, भाईचारा लाने को.
आतंक वाद कोई जात नहीं है, भाईचारा सौगात नहीं है
मौका परास्त ये लोग है बस कुछ, और इनकी औकात नहीं हैं.

खाते हैं हम कसम हर कदम, बस आतंक वाद मिटानी हैं
लेकिन नहीं मिटेगी कभी ये,  हैवानो ने ठानी हैं
करना हैं जो आतंक वाद खत्म, आओ ये प्रण स्वीकार करो.
करते हैं जो व्यापार इसका, उन धर्मनिरपेछो का बहिस्कार करो.

        
                      आमोद ओझा (रागी)

!! जिंदगी की शाम हु मैं !!

जिंदगी की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,
रख लो होठों से लगाकर, कही छलकता जाम हु मैं.

मैं  अंगूरों की बानी हु, मदिरायलए पयासी हु मैं.
मेरे दास है पिने वाले, और उनकी दासी हु मैं.
रूह को सुकून देती, दर्द का पैगाम हु मैं,
रख लो होठों से लगाकर, कही छलकता जाम हु मैं.

जिंदगी की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,

मैं बड़ी पॉयरी बला हु, और मेरे रंग है गेहरें.
लाल पीले बोतलों से, लगती हु मैं और सुनहरे.
आते है हर लोग खिचे, ऐसी काया आम हु मैं.
जात पात को मैं न देखती, सब की छाया शाम हु मैं,
रख लो होठों से लगाकर, कही छलकता जाम हु मैं.

जिंदगी की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,

हु जहा मैं वह जगह भी, जलवा ऐ माशूक नहीं .
शौक ऐ दीदार अगर है, तो हर नज़र महबूब सही.
पार्टिओ में रओनको का,एकलौता इललजम हु मैं.
रख लो होठों से लगाकर, कही  छलकता जाम हु मैं.

जिंदगी  की शाम हु मैं, आज तुम्हारे नाम हु मैं,


आमोद ओझा  (रागी)

!! मुझे कहीं गर जाना होता !!

लेके लाठी नंगे पाँव बस,
गठरी बांध रवाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

आशाओं और उम्मीदों के,
पंख पखार सायना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

तितलिओ सा उडाता मैं और,
बादलों में छिप जाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

झर झर बहते झरनो को भी,
मोड़ उस पार ले जाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

उड़ पंछियों सा मैं भी एक दिन,
चहक कर धुन बजाना होता,
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

खूबसूरती से पंख फैलाये,
निस्चल निसदिन आना होता, 
मुझे कहीं गर जाना होता. !!

  
       अमोद ओझा (रागी)