जिंदगी के रास्तों पे फिरता हु,
लेके अपने करमों का मैं बोझ भारी,
लिए हाथों की कुछ लकीरें और,
मेरी किस्मत का लिखा वह चिर धारी,
बढ़ चली थी दुनिया सारी एक ही झुण्ड में,
पीछे रह गया तो बस,
मैं अकेला !!
था खामोश चल रहा मैं, एक छोर से,
न मिला पाया मैं सुर में सुर,
न जुड़ पाया कोई मेरे उस, एक छोर से,
निकल गए थे सभी, कही दूर मुझसे,
भटक गया रास्ता था शायद,
मैं अकेला !!
गुजरते हुए, उन पुरानी गलियों से,
पड़ रहे थे, डगमगाते कदम मेरे,
किसी ओर, अंधियारी गलियों में
था कठिन यह राह मेरा, पाना मेरे उस मंजिल को,
छोड़ दिया फिर आस दिल का, रह गया बस,
मैं अकेला !!
अमोद ओझा
(रागी)
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