शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

!! मेरा गाँव !!

जहां गंगा का निर्मल पानी,
वहां उड़ती अब भी चुनर धानी,
सौंधी सी आती मिट्टी की खुसबू,
और बसंत बहार हवाएँ भी,!
खिलते हुए वह खेत सुहानी,
ढ़ेर अनाज की जैसे घानी
और बैलों का तान सुनाता,
गीत गाती गौराएँ भी,!!
जहां अम्माँ के सुरीले गीतों पे,
थिरक उठाते है मेरे भी पाँव
है यहीं मेरा भी गाँव !!


हैं होते अब भी वह खेल पुराने,
डंडा गुल्ली, चित्ते, फाने,
बगीचो में शोर मचाना,
आम, महुआ और इमली खाना,
खेतों में वो साग सुहाने,
केराव बूंट और मटर के दाने,
और वहां खेतो में जाना,
खलिहानों में धान कटाना
ला अनाज खेतो से घर में,
दीप अनंत त्यौहार मानना.
यु निहारती हैं धरती माँ
चरण इस्पर्श हमारे ठाँव
है यहीं मेरा भी गाँव !!


वो राग छेड़ती हवा सुरीले
धरती हरी और आसमाँ नीले
करती झन झन पेड़ों की डाली
बजती छन छन धानो की बाली
वो ढोलक के थाप सखी रे ,
बजती पायल झाल मंजीरे
और वहा लड़कियों का गाना
त्योहारो में रंग जमाना
कजरी और मल्हार गीतों से,
पुलकित होते सारे दिशा सराव
है यहीं मेरा भी गाँव !!


यु सुबह धुएं का छटना
बना कतार कुएं पर जुटना
ले माथे पर मिट्टी की गगरी
भरती पानी थी सब सुंदरी
यु सखियों संग मेले जाना
और वहां हुड़दंग मचाना
मुस्काती सी वो कलियाँ
“सिहनपुरा” की वो गालियां,
और वहां के पीपल के छाव.
है यहीं मेरा भी गाँव !!


अमोद ओझा (रागी)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें